दीपावली और गोवर्धन पूजा पर गोवर्धन में बहती है भक्ति रस की गंगा
दीपावली और गोवर्धन पूजा पर देश के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री
श्यामाश्याम के आशीर्वाद की उम्मीद में मथुरा की ओर खिंचे चले आते हैं और दोनो ही दिन गोवर्धन का
वातावरण भक्ति रस से सराबोर हो जाता है।
दीपावली और गोवर्धन पूजा पर चूंकि हजारों विदेशी कृष्ण भक्त भी गोवर्धन आते हैं इसलिए जिला
प्रशासन के लिए यह दो दिन विशेष चुनौती के होते है। इस बार दीपावली का पर्व 12 नवंबर को और
गोवर्धन पूजा का पर्व 13 नवंबर को है।
जिलाधिकारी शैलेन्द्र सिंह ने उक्त दोनो पर्वों पर की गई व्यवस्था के बारे में बताया कि व्यवस्थाएं इस
प्रकार की जा रही हैं कि किसी भी तीर्थयात्री को मन्दिरों में दर्शन करने या गोवर्धन की परिक्रमा करने में
कोई परेशानी न हो किंतु सुरक्षा से कोई समझौता नही किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि गुरूवार को उन्होंने व्यवस्थाओं को देखा भी था तथा उनमें कुछ सुधार करने के निर्देश
भी दिये थे। दोनों दिन तीर्थयात्रियों का जमघट गोवर्धन में लगने के कारण 100 अतिरिक्त बसें विभिन्न
मार्गों से गोवर्धन पहुंचने के लिए लगाई जाएंगी तथा तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ने पर बसों की संख्या
बढ़ा दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि जहां गोवर्धन में शुद्ध खाद्य पदार्थों की बिक्री सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं
वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र गोवर्धन में चिकित्सा के इन्तजाम इस प्रकार किये गए हैं कि दोनेा दिन
हर समय कोई न कोई चिकित्सक मौजूद रहे।इसके अलावा एम्बुलैन्स के साथ दो मेडिकल टीमें थाने के
पास मौजूद रहेंगी तथा आवश्यकता पड़ने पर तुरंत मौके पर पहुंचेंगीै
जिलाधिकारी ने यह भी बताया कि जंजीर खींचने, जेबकटी रोकने एवं महिलाओं से अभद्रता करने की
घटनाओ को रोकने के लिए प्रमुख मंदिरों में सादा वर्दी में पुलिसकर्मी लगाए जाएंगे।
दीपावली के दिन हजारों तीर्थयात्री जहां मानसी गंगा के घाटों पर मिट्टी के दीपक जलाकर श्यामाश्याम
का आशीर्वाद लेते हैं वही गोवर्धन पूजा पर गोवर्धन महराज का अभिषेक एवं पूजन कर उसकी सप्तकोसी
परिक्रमा करते है। इस दिन बहुत से तीर्थयात्री दूध की धार से भी गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं।
गोवर्धन परिक्रमा का सबसे अधिक भावपूर्ण दृश्य उस समय देखने को मिलता है जब हजारों विदेशी कृष्ण
भक्त सिर पर प्रसाद की डलिया रखकर गोवर्धन महराज का पूजन करने के लिए एक साथ जाते हैं।
इनमें से सैकड़ो कृष्ण भक्त गोवर्धन की परिक्रमा भी करते हैं।
दानघाटी मन्दिर गोवर्धन के प्रमुख सेवायत आचार्य मथुरा प्रसाद कौशिक ने बताया कि गोवर्धन पूजा उसी
प्रकार की जाती है जिस प्रकार द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर ब्रजवासियों ने की थी। उनका
यह भी कहना था कि गोवर्धन पूजा वास्तव में ब्रजवासियों पर कान्हा की कृपा की पुनरावृत्ति है।
एक पौराणिक दृष्टांत देते हुए उन्होंने बताया कि सात साल के कान्हा ने सात दिन तक गोवर्धन को
अपनी छोटी उंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की इन्द्र के कोप से रक्षा की थी क्योंकि कान्हा के कहने
पर ब्रजवासियों ने इन्द्र की पूजा बन्द कर दी थी और इन्द्र ने अपने संवर्तक मेघों से ब्रज को डुबोने का
आदेश दिया था। बाद में जब इन्द्र्र को असलियत का पता चला तो उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना भी
की थी। उनका कहना था कि दोनों ही दिन गोवर्धन में भक्ति रस की गंगा ऐसी प्रवाहित होती रहती है
कि गोवर्धन का कण कण कृष्णमय हो जाता है।