CII मेले में गूंजती भारत की शिल्प परंपरा की धड़कन
28वें संस्करण में दर्शकों को एक अनोखा अनुभव
CII चंडीगढ़ मेले के 28वें संस्करण में दर्शकों को एक अनोखा अनुभव मिल रहा है, जहाँ पारंपरिक हस्तशिल्प और आधुनिक जीवनशैली के ब्रांड्स का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस संस्करण का एक अहम पहलू भारत की समृद्ध शिल्प विरासत को दर्शाना है, जहाँ विभिन्न राज्यों के हुनरमंद कारीगरों द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित उत्पाद प्रदर्शित किए जा रहे हैं।
इस वर्ष पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख केंद्र में हैं, जो अपनी संस्कृति, शिल्प और रचनात्मकता का जीवंत संगम प्रस्तुत कर रहे हैं। हर राज्य का मंडप अपनी अनूठी क्षेत्रीय परंपराओं को दर्शाता है, और दर्शकों को भारत की शिल्प यात्रा पर ले जाता है — पश्चिम बंगाल के पर्यावरण अनुकूल जूट उत्पादों से लेकर लद्दाख की लिकिर मिट्टी कला तक, जो हजारों साल पुरानी शिल्पकला की विरासत को संजोए हुए है।

लद्दाख
यह स्टॉल लद्दाख की पारंपरिक कला की झलक प्रस्तुत करता है। रिगजेन नामग्याल, जो लद्दाख के अंतिम कुम्हार परिवार से हैं, सदियों पुरानी मिट्टी की कला को जीवित रखे हुए हैं। उनके स्टॉल पर फूलदान, मछली के बर्तन, मक्खन रखने के बर्तन, फ्रिज मैग्नेट और अन्य सजावटी वस्तुएँ हैं — जिन्हें एक विशेष स्थानीय चमकदार परत से ढका जाता है, जो उन्हें अनूठा रूप और चमक देती है। रिगजेन की अपने पारिवारिक हुनर को बचाने की लगन उनकी भारतभर की प्रदर्शनियों और संगोष्ठियों में भागीदारी से झलकती है।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल की रचनात्मक विविधता यहाँ देखने लायक है — कांथा कढ़ाई और मूड़ी डिज़ाइन से लेकर हस्तनिर्मित आभूषण, शोलार (शोला) कला और जूट उत्पाद तक। एक विशेष कारीगर, ज्योत्सना सान्ट्रा, धान के भूसे (धानर खोर) से काम करने वाली बंगाल की चुनिंदा कलाकारों में से एक हैं। उनके खूबसूरती से बने फ्रेमों को तैयार होने में दो महीने से अधिक का समय लगता है, क्योंकि भूसे को पहले भिगोना, रंगना और सुखाना पड़ता है। उनकी मेहनत और कला को जिला और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जिससे उनका स्टॉल दर्शकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन गया है।

जम्मू और कश्मीर
जम्मू और कश्मीर का मंडप खूबसूरत हाथ से कढ़े फीरन, पश्मीना शॉल और अन्य उम्दा वस्त्रों को प्रदर्शित करता है — हर वस्तु में पीढ़ियों से चली आ रही विरासत की कहानी छिपी है। हस्तशिल्प के साथ-साथ, आगंतुक यहाँ के पारंपरिक व्यंजनों का भी स्वाद ले सकते हैं। वानचू सन्स नामक तीन साल पुराना उद्यम केसर, कश्मीरी मिर्च, सी-बकथॉर्न, पहाड़ी लहसुन और पारंपरिक कश्मीरी चाय जैसे उत्पादों के साथ यहाँ मौजूद है। उद्यमियों को उम्मीद है कि CII मेले जैसे राष्ट्रीय मंच पर उपस्थिति से उन्हें नए बाज़ार मिलेंगे और उनका व्यवसाय आगे बढ़ेगा।
भारतभर के कारीगरों के लिए, CII चंडीगढ़ मेला सिर्फ एक बाज़ार नहीं है — यह विरासत, आजीविका और शिल्प के प्रति प्रेम का उत्सव है। यह मेला लगातार उत्साहित दर्शकों को आकर्षित कर रहा है, जिनमें से कई पहली बार इन शिल्पकलाओं से रूबरू हो रहे हैं। इस तरह की क्षेत्रीय विविधता को मंच देकर, यह आयोजन भारत की हस्तनिर्मित विरासत की आत्मा को जीवंत रूप में सामने लाता है।

