माघी पूर्णिमा स्नान के साथ कल्पवासियों का समाप्त हुआ कल्पवास
माघी पूर्णिमा स्नान
महाकुंभनगर,अमृत से सिंचित और पितामह ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्रपतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम में माघपूर्णिमा स्नान पर्व के साथ ही एक माह का संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास भीसमाप्त हो गया।माघ मेला बसाने वाले प्रयागवाल सभा के महामंत्री एवं तीर्थ पुराेहित राजेंद्र पालीवाल ने बताया किभारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोनेवाला आध्यात्मिक मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है।

इस मेले में पूरे भारत की संस्कृति कीझलक देखने को मिलती है। उन्हाेंने बताया कि शनिवार को माघी पूर्णिमा स्नान के साथ एक माहका कल्पवास समाप्त हुआ।श्री पालीवाल ने बताया कि पुराणों और धर्म शास्त्रों में कल्पवास को आत्मा शुद्धि और आध्यात्मिकउन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए अध्यात्म की राह का एक पड़ाव है,जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है।
हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तकसंगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार, तीन समय गंगास्नान, ध्यान एवं दान, भागवत कथा का श्रवण करके कल्पवास करते है।