37 वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला में मुस्तकीम और असरफ अली के प्योर लेदर बैग खूब लोकप्रिय हो रहे हैं
फरीदाबाद में आयोजित हो रहे 37वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला में मुस्तकीम और असरफ अली के प्योर लैदर बैग्स बरबस ही अपनी ओर ध्यान खींचते हैं।
इस स्टॉल पर एक से एक खूबसूरत बैग्स को पर्यटकों की खूब वाह – वाही मिल रही है। सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले में स्टॉल नंबर – 453 पर रखे गए इन प्योर लैदर के बैग्स नए – नए डिज़ाइन में उपलब्ध हैं। यह उत्पाद में मुख्य रूप से वॉलेट बैग, हैंड बैग, सीलिंग बैग, लैपटॉप बैग, ट्रॉली बैग, टिफन बैग सहित तमाम प्योर लेदर के बैग को बहुत ही खूबसूरती से बनाया गया है। पर्यटक जब उनकी दुकान के सामने से गुजरते हैं तो उन्हें लेदर के विभिन्न प्रकार के बैग अपनी ओर अवश्य आकर्षित करते हैं।
दिल्ली के मुस्तकीम और असरफ अली ने बताया कि हरियाणा की तर्ज पर अब दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी एक जनपद एक उत्पाद योजना शुरू की है, जिसके माध्यम से रोजगार के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित हो रहा है। अब उनके जैसे सभी हस्तशिल्प कलाकारों को एक ही छत के नीचे अपने उत्पाद की मार्केटिंग करने तथा अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म प्रणाली की सुविधाएं मिल रही हैं। उन्होंने बताया कि इस कार्य में वे पिछले सात वर्षों से लगे हुए हैं। सरकार द्वारा जारी हिदायतों के अनुसार उन्होंने माइनॉरिटी स्कीम के जरिए यह कार्य मात्र डेढ लाख रुपए के लोन से शुरू किया था। इससे वह सालाना छ: से सात लाख रुपए की आमदनी करने में सक्षम बन गए हैं। उनका कहना है कि लेदर कला हस्तशिल्प में माहिर होने से चलती है। अब उनके साथ लगभग एक दर्जन लोग इस रोजगार से जुड़े हुए हैं।
उन्होंने बताया कि वे पिछले सात सालों से निरंतर सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले में अपनी स्टॉल लगाते आ रहे हैं। मेले में बैग्स का रिटेल का व्यापार काफी अच्छा चल रहा है। वे कहते हैं कि सूरजकुंड शिल्प मेले में व्यापार को बढ़ावा मिलता है। मेले में उन्हें खूब ग्राहक मिल रहे हैं और दुकान की प्रसिद्धि भी बढ़ती जा रही है। उनके द्वारा बनाए गए वॉयलेट 250 रुपए का तथा लेदर बैग मात्र 1200 रुपए से शुरू होकर 8 हजार रुपए तक उपलब्ध हैं।
दूसरी ओर, आइवरी कार्विंग (हाथी दांत की नक्काशी) में देश – विदेश में पहचान बनाने वाले हस्तशिल्प अब्दुल हसीब भी 37 वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले में पहुंचे हैं। उनकी मुगलकालीन नक्काशी कला को देखने के लिए पर्यटक उनके स्टॉल पर अवश्य रुकते हैं। अब्दुल हसीब आइवरी कार्विंग के लिए साल 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार और साल 2018 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू द्वारा शिल्प गुरु का सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। इन्होंने अपनी स्टॉल पर मुगल कालीन नक्काशी को बखूबी संजोया हुआ है।
अब्दुल हबीस को नक्काशी की कला विरासत में मिली है। वे बताते हैं कि उनके पूर्वज शाहजहां के काल में हाथी के मौजा पर नक्काशी किया करते थे। वर्ष 1892 से इनके पूर्वजों के नक्काशी के रिकॉर्ड को उन्होंने संजोकर रखा हुआ है। इसके अलावा हाथी दांत की नक्काशी के लिए 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने इनके दादा अब्दुल मलिक को राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया था।
अब्दुल हसीब का कहना है कि लकड़ी पर होने वाली नक्काशी में रंग भरकर उसकी खूबसूरती को बढ़ाया जाता है। इसके लिए वह स्टोन कलर का प्रयोग करते हैं। वह अपनी मुगल कालीन नक्काशी को कैमल बोन के अलावा कदम, चंदन, आबनूस की लकड़ी पर भी करते हैं। वे कहते हैं कि अकबर काल में उनके नौ रत्न बेहद प्रसिद्ध थे। उन्होंने इन नौ रत्नों को चंदन की लडक़ी पर भी उतारा है और उसे पत्थर के आकर्षक रंगों से सजाया है। पर्यटक अकबर के नौ रत्नों में बहुत रुचि दिखा रहे है। अब्दुल हसीब की स्टॉल पर 200 से लेकर 20 हजार रुपए तक की कलाकृतियां उपलब्ध है।