उत्तर प्रदेश

लखनऊ में बुलडोजर एक्‍शन पर हाई कोर्ट सख्‍त, ‘अवैध निर्माण के लिए LDA के अधिकारियों को क्यों न ठहराया जाए जिम्मेदार’

लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने पाम पैराडाइज सोसाइटी में रो-हाउस के अवैध निर्माण के मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि इसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के उन अधिकारियों को क्यों न जिम्मेदार ठहराया जाए जिन पर इस अवैध निर्माण को रोकने का दायित्व था। न्यायालय ने एलडीए वीसी से इस अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों पर थी उनका ब्यौरा तलब किया है।

न्यायालय ने पाम पैराडाइज सोसाइटी के घरों के धवस्तीकरण पर भी अंतरिम रोक लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति बीआर सिंह की खंडपीठ ने पाम पैराडाइज वेलफेयर सोसाइटी व 11 अन्य की याचिका पर पारित किया है।

याचियों की ओर से दलील दी गई कि उन्होंने पाम पैराडाइज के बिल्डर से रो-हाउस खरीदें हैं। जब इस सोसायटी के बारे में पता करने एलडीए गए तो वहां मौखिक तौर पर बताया गया कि मकानों के निर्माण में कोई भी अनियमितता नहीं है। इस पर विश्वास कर के उन्होंने रो-हाउस खरीदे, लेकिन अब एलडीए ले-आउट न पास होने का हवाला देकर उन्हें गिराने की बात कह रहा है।

न्यायालय के पूछने पर एलडीए के अधिवक्ता ने बताया कि घरों के निर्माण न तो सरकारी जमीन पर हुए हैं और न ही वहां कोई अतिक्रमण है, लेकिन बिल्डर ने बिना संस्तुति के रो-हाउस का निर्माण किया है। इस पर याचियों की ओर से कहा गया कि वे परिवार समेत इन घरों में रह रहे हैं, लिहाजा वे कंपाउंडिंग (प्रशमन) के लिए आवेदन दे सकते हैं। इस पर न्यायालय ने आदेश दिया कि याचियों की स्थिति को देखते हुए कंपाउंडिंग प्रक्रिया पर सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाए।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस आदेश का कोई लाभ पाम पैराडाइज के बिल्डर को नहीं मिलेगा। उसके खिलाफ चल रही सिविल अथवा क्रिमिनल प्रक्रिया में इस आदेश से कोई राहत नहीं मिलेगी। यह आदेश सिर्फ याचियों के लिए है जो बिल्डर व संभवतः एलडीए के कुछ अधिकारियों के धोखा दिए जाने से इस परिस्थिति में हैं।

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